कोरोना की तरह अभी टला नहीं है एड्स का खतरा, बरते सावधानी- डा. वी.के. वर्मा
बस्ती :- विश्व एड्स दिवस पर पटेल एस.एम.एच.हास्पिटल एण्ड आयुष पैरा मेडिकल कालेज गोटवा में संक्षिप्त गोष्ठी का आयोजन कर छात्र छात्राओं को एचआईवी एड्स के लक्षण, सुरक्षात्मक बचाव आदि की जानकारी दी गई।
हास्पिटल के प्रबंधक एवं रोटरी क्लब बस्ती ग्रेटर के उपाध्यक्ष डा. वी.के. वर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि एक तरफ जहां मानव सभ्यता के समक्ष कोरोना संकट से निपटने की बहुत बड़ी चुनौती है वहीं दूसरी तरफ एड्स एक ऐसी भयंकर बीमारी है जिसका नाम तो छोटा है लेकिन इसका परिणाम काफी भयावह है। यह बीमारी इंसान को धीमी मौत मारती है, पर इसकी मौत इतनी भयावह होती है कि लोग इसके खौफ से ही मर जाते हैं। डा. वर्मा ने कहा कि अभी तक एड्स का कोई टीका नहीं विकसित हो सका है ऐसे में सावधानी ही बचाव है। बताया कि अपने देश भारत में पहले की अपेक्षा एचआईवी एड्स से मौतों की रफ्तार जागरूकता से कम हुई है किन्तु खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है।
डा. वर्मा ने बताया कि विश्व एड्स दिवस की शुरूआत 1 दिसंबर 1988 को हुई थी जिसका उद्देश्य, एचआईवी एड्स से ग्रसित लोगों की मदद करने के लिए धन जुटाना, लोगों में एड्स को रोकने के लिए जागरूकता फैलाना और एड्स से जुड़े मिथ को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना था। एड्स का पूरा नाम ‘एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ है और यह बीमारी एच.आई.वी. वायरस से होती है। एच.आई.वी. का वाइरस यदि किसी स्वस्थ मनुष्य के शरीर में पहुंच जाता है तो वह उसके शरीर की रोग-निरोधक क्षमता को नष्ट करके एड्स की बीमारी तक पहुंचा देता है और एड्स रोग मनुष्य को मौत के मुंह में डाल देता है। इस रोग का डरावना पहलू यह है कि इस रोग से पीड़ित 10 लोगों में से 9 को यह पता भी नहीं होता कि वे इस जानलेवा रोग का शिकार हो चुके हैं।
डा. मनोज कुमार मिश्र, डा. आलोक रंजन, डा. लालजी यादव आदि ने गोष्ठी में बताया कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक जागरुकता अभियान के चलते हाल के कुछ वर्षों में एचआईवी संक्रमण और एड्स से जुड़ी मौतों में काफी गिरावट आई है। रिपोर्ट की माने तो बच्चों तथा महिलाओं में मृत्यु दर और संक्रमण दर में भारी कमी की वजह पीड़ितों का एंटीरेट्रोवायरल दवाइयों तक बेहतर पहुंच है। रिपोर्ट में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ यौन उत्पीडन से निपटने के लिए और काम करने की जरूरत महसूस की गई है। महिलाएं और बच्चियां उस वर्ग में आती हैं जिन्हें पुरुषों के मुकाबले संक्रमण होने का खतरा ज्यादा होता है। चिकित्सकों ने बताया कि भारत में आज एच.आई.वी. से पीड़ित रोगियों की संख्या लाखों में है। महामारी एड्स में दक्षिणी अफ्रीका के बाद दूसरा नंबर भारत का है, लेकिन मेडिकल जर्नल द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक भारत में एड्स या एचआईवी से प्रभावित मरीजों की संख्या में काफी गिरावट आई है। यह एक सुखद संकेत है। हमें एचआईवी एड्स से बचाव के लिये कोरोना की तरह सजग रहना होगा।
एचआईवी एड्स पर केन्द्रित संक्षिप्त गोष्ठी में डा. प्रियांशी शर्मा, डा. आर.एन. चौधरी, डा. राधेश्याम पाण्डेय, पूजा वर्मा, माया वर्मा, वीरेन्द्र कुमार वर्मा, मनोज गुप्ता, रीतेश चौधरी, उमेश शर्मा, राम स्वरूप वर्मा, अंकुर पाण्डेय, मनीष पाण्डेय, उत्कर्ष दूबे, मनीष, गोल्डी वर्मा के साथ ही फार्मा के छात्र रूखसार बानो, पूजा, गिरिजा, माधुरी वर्मा, नेहा यादव, प्रीती यादव, रूपा, संगीता देवी, सुभाष चौधरी, वेद प्रकाश चौहान, दीप शिखा चौधरी, मीना यादव, अंजली वर्मा, माधुरिका चौधरी, पूजा यादव, सुप्रिया पटेल आदि शामिल रहे।