Tuesday, July 15, 2025
बस्ती

डी आई एफ ए दमया में जश्न ए ईद मिलादुन्नबी मनाया गया

बस्ती। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम से मोहब्बत बातिनी और जाहिरी अगर नही तो नमाज का क्या….

नमाज़ तो कर्बला में हुसैन र0 अ0 और यजीद के दोनो गिरोहों ने पढ़ी लेकिन हुसैन र0 अ0 की नमाज़ और दीन-ए-मोहम्मदी से सच्ची मोहब्बत ने इस्लाम को तकयामत तक जिंदा किया।

–तक़वा के साथ नमाज़ कायम करना ही मोहब्बतें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम से अव्वल दलील है—उस्ताद एजाज़ क़ादरी।

बस्ती-आखिरी पैगम्बर प्यारे रसूलुल्लाह हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम की पैदाइश मुबारक 12 रबीउल अव्वल के दिलकश मौके पर दारुल उलूम इस्लामियां फैजाने आलम दमया परसा में हुजूर की पैदाइश व सिरत-ए-पाक पर मिलाद-ए-पाक की महफ़िल सजाई गई। महफ़िल-ए-मिलाद में मदरसा के बच्चो ने नात शरीफ पेश किया।
मौलाना मोहम्मद आमिर रज़ा कादरी ने हुजूर की पैदाइश मुबारक के मौके पर दिलकश नात पेश किया जिससे सभी आशिक-ए-रसूल झूम उठे और मौलाना अब्दुल्लाह अलिमी ने बताया कि हुजूर की पैदाइश मुबारक 20 अप्रैल 571 ई में अरब के शहर मक्का में हुवा।

हुजूर के वालिद का नाम हज़रत अब्दुल्लाह और वालिदा का नाम बीवी आमिना था। पैदाइश से पहले वालिद और 6 साल की उम्र में वालिदा का इंतेक़ाल हो गया फिर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम का लालन-पालन दादा हजरत अब्दुल मुत्तलिब ने किया । 8 साल की उम्र में दादा का भी इंतेक़ाल हो गया। दादा ने अपने इंतकाल से पहले हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम की जिम्मेदारी उनके चाचा अबू तालीब को सौंप दी, जिन्होंने बड़े ही मोहब्बत से उनकी देखभाल की ।

बचपन से ही हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवासल्लम गम्भीर स्वभाव के, कम तथा मीठा बोलने वाले थे, जबकि अरब के लोग दगाफरेब, झूठ बोलने में अपना जीवन बिताते थे । उनकी सच्चाई को देखकर लोग उन्हें अल-अमीन, अर्थात् सच्चा ईमानदार कहते थे । आगे तफ़्सीर से मौलाना मोहम्मद आमिर रज़ा कादरी ने हुजूर की सिरत पर रोशनी डाली।

कार्यक्रम में मुख्य तौर से प्रबंधक जावेद आलम खान, प्रिंसिपल उस्ताद एजाज़ आलम खान क़ादरी, मास्टर फर्रुख इस्लाम, मौलाना वलीउल्लाह, मजीबुल्लाह, अंजुम खातून, फातिमा आदि मुकामी लोग मौजूद रहे।

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