Wednesday, April 23, 2025
ज्योतिष और धर्म

बसन्त पंचमी 16 फरवरी तिथि पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व महत्व

बसंत पंचमी :- ( मार्तण्ड प्रभात)/ बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति में एक बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है जिसमे हमारी परम्परा, भौगौलिक परिवर्तन , सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष सभी का सम्मिश्रण है, हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छः ऋतुओं (बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर) में बसंत को ऋतुराज अर्थात सभी ऋतुओं का राजा माना गया है और बसंत पंचमी के दिन को बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है इसलिए बसंत पंचमी ऋतू परिवर्तन का दिन भी है जिस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना शुरू हो जाता है पेड़ों पर नयी पत्तिया कोपले और कलिया खिलना शुरू हो जाती हैं पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती है।

 

बसंत पंचमी को विशेष रूप से सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है यह माता सरस्वती का प्राकट्योत्सव है इसलिए इस दिन विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा उपासना कर उनसे विद्या बुद्धि प्राप्ति की कामना की जाती है इसी लिए विद्यार्थियों के लिए बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत विशेष होता है।

बसंत पंचमी के दिन का एक और विशेष महत्व भी है बसंत पंचमी को मुहूर्त शास्त्र के अनुसार एक स्वयं सिद्ध मुहूर्त और अनसूज साया भी माना गया है अर्थात इस दिन कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती इस दिन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किये जा सकते है।

शुभ  मुहूर्त

पंचमी तिथि आरंभ 16/फरवरी/2021 को प्रातः 03.36 से

 

पंचमी तिथि समाप्त 17 फरवरी 2021को प्रातः 05.46

 

सरस्वती पूजा का मुहूर्त सुबह 07:06 बजे से मध्यान 12:53 तक का है और इस मुहूर्त की अवधि 5 घंटे 46 मिनट तक रहेगी दोपहर तक इस पूजन को क‍िया जा सकता है।

 

माता सरस्वती को ज्ञान, सँगीत, कला, विज्ञान और शिल्प-कला की देवी माना जाता है।

 

भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। कुछ प्रदेशों में आज के दिन शिशुओं को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ करने के लिये काफी शुभ माना जाता है इसीलिये माता-पिता आज के दिन शिशु को माता सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्या आरम्भ कराते हैं। सभी विद्यालयों में आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है।

 

सरस्वती, बसंत पंचमी पूजा।

 

1. प्रात:काल स्नाना करके पीले वस्त्र धारण करें।

 

2. मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने रखें तत्पश्चात कलश स्थापित कर प्रथम पूज्य गणेश जी का पंचोपचार विधि पूजन उपरांत सरस्वती का ध्यान करें।

 

ध्यान मंत्र।

 

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।

हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

 

3. मां की पूजा करते समय सबसे पहले उन्हें आचमन व स्नान कराएं।

4. माता का श्रंगार कराएं ।

5. माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं।

6. प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।

7. श्वेत फूल माता को अर्पण करें।

8. तत्पश्चात नवग्रह की विधिवत पूजा करें।

 

बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा के साथ सरस्वती चालीसा पढ़ना और कुछ मंत्रों का जाप आपकी बुद्धि प्रखर करता है।

अपनी सुविधानुसार आप ये मंत्र 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं।

 

निम्न मंत्र या इनमें किसी भी एक मंत्र का यथा सामर्थ्य जाप करें।

 

1. सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने

विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥

 

2. या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

3. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां।

सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाहा।।

 

4. एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र

ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।

 

5. वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।

मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।

 

6. सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।

वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।

विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।।

 

7. प्रथम भारती नाम, द्वितीय च सरस्वती

तृतीय शारदा देवी, चतुर्थ हंसवाहिनी

पंचमम् जगतीख्याता, षष्ठम् वागीश्वरी तथा

सप्तमम् कुमुदीप्रोक्ता, अष्ठमम् ब्रह्मचारिणी

नवम् बुद्धिमाता च दशमम् वरदायिनी

एकादशम् चंद्रकांतिदाशां भुवनेशवरी

द्वादशेतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेनर:

जिह्वाग्रे वसते नित्यमं

ब्रह्मरूपा सरस्वती सरस्वती महाभागे

विद्येकमललोचने विद्यारूपा विशालाक्षि

विद्या देहि नमोस्तुते”

 

8. स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए।

 

जेहि पर कृपा करहिं जन जानि।

कवि उर अजिर नचावहिं वानी॥

मोरि सुधारहिं सो सब भांति।

जासु कृपा नहिं कृपा अघाति॥

 

9. गुरु गृह पढ़न गए रघुराई।

अलप काल विद्या सब पाई॥

 

माँ सरस्वती वंदना।

 

वर दे, वीणावादिनि वर दे !

प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव

भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर

बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;

कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर

जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव, नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

 

कुछ क्षेत्रों में देवी की पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है।

विद्यार्थी मां सरस्वती की पूजा कर गरीब बच्चों में कलम व पुस्तकों का दान करें।

संगीत से जुड़े व्यक्ति अपने साज पर तिलक लगा कर मां की आराधना करें व मां को बांसुरी भेंट करें।

 

सरस्वती स्तोत्रम्

 

श्वेतपद्मासना देवि श्वेतपुष्पोपशोभिता।

 

श्वेताम्बरधरा नित्या श्वेतगन्धानुलेपना॥

 

श्वेताक्षी शुक्लवस्रा च श्वेतचन्दन चर्चिता।

 

वरदा सिद्धगन्धर्वैर्ऋषिभिः स्तुत्यते सदा॥

 

स्तोत्रेणानेन तां देवीं जगद्धात्रीं सरस्वतीम्।

 

ये स्तुवन्ति त्रिकालेषु सर्वविद्दां लभन्ति ते॥

 

या देवी स्तूत्यते नित्यं ब्रह्मेन्द्रसुरकिन्नरैः।

 

सा ममेवास्तु जिव्हाग्रे पद्महस्ता सरस्वती॥

॥इति श्री सरस्वती स्तोत्रं संपूर्णम्॥

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