मंगला गौरी व्रत सौभाग्य और संतान का व्रत

मंगलागौरी व्रत, पूजन और महत्व
श्रावण मास महादेव का महीना होता है। आमतौर पर लोग सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखकर महादेव और माता पार्वती की आराधना करते हैं। लेकिन सावन में जितना महत्व सोमवार व्रत का है, उतना ही मंगलवार के व्रत का भी है।
सावन के मंगलवार का व्रत मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस बार सावन में 4 मंगलवार पड़ेंगे।
किसको रखना चाहिए मंगलागौरी व्रत
जिन लोगों के वैवाहिक जीवन में समस्याएं चल रही हों, संतान सुख की कामना हो उनको सावन के महीने में माता मंगला गौरी का व्रत जरूर रखना चाहिए
मान्यता है कि सावन का महीना महादेव और माता पार्वती दोनों को अति प्रिय है। इसलिए इस माह में जो भी पूरी श्रद्धा के साथ उनकी आराधना करता है, माता पार्वती और भोलेनाथ उस भक्त की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं।
कब है व्रत
जानिए सावन के मंगलवार के व्रत का महत्व और विधि
इस व्रत की महिमा का उल्लेख भविष्य पुराण में भी किया गया है। लेकिन ये व्रत एक बार शुरू करने के बाद पांच वर्षों तक लगातार सावन माह में रखना पड़ता है। वैवाहिक स्त्रियां पहले साल का मंगला गौरी व्रत मायके में रहें, बाकी के चार सावन में इस व्रत को ससुराल में रखें। अगर पांच सालों तक सावन माह के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत सच्ची श्रद्धा से किया जाए तो मातारानी मनोकामना को जरूर पूरा करती हैं।
व्रत और पूजन विधि जानें
श्रावण के महीने में पहले मंगलवार के दिन इस व्रत की शुरुआत करें। इस बार 27 जुलाई से इस व्रत की शुरूआत होगी।
पूजा विधि
व्रत वाले दिन सुबह स्नानादि करने के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद चौकी पर एक सफेद और एक लाल कपड़ा बिछाएं और माता पार्वती की प्रतिमा रखें। फिर आटे का एक बड़ा दीपक बनाएं और दीपक में 16 बत्तियों को एक साथ डालकर प्रज्ज्वलित करें।
अब भगवान गणेश के पूजन से पूजा की शुरुआत करे।
गणपति को पंचामृत, जनेऊ, चंदन, रोली, सिंदूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, बिल्ब पत्र, इलायची, फल, मेवा, प्रसाद चढ़ाएं. चावल के नौ ढेर बनाकर नवग्रह पूजन करें. इसके बाद 16 गेंहू के ढेर बनाएं और उनकी पूजा करें. उन्हें रोली, हल्दी, मेहंदी, सिन्दूर और जनेऊ चढ़ाएं।
इसके बाद माता मंगला गौरी की पूजा आरंभ करें।
कैसे करे देवी की पूजा
माता मंगला गौरी की पूजा के लिए एक थाली में चकला रखें. उस पर मंगला गौरी की मिट्टी की प्रतिमा बनाएं और आटे की लोई बनाकर रख लें। इसके बाद मां मंगला गौरी को गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी से स्नान कराएं, सुंदर से वस्त्र पहनाएं, रोली, चन्दन, हल्दी, सिन्दूर, मेंहदी, काजल आदि लगाकर माता का श्रंगार करें. इसके बाद मां को 16 प्रकार के फूल, 16 माला, 16 तरह के पत्ते, 16 आटे के लड्डू, 16 फल, पांच तरह की मेवा, 16 बार सात तरह का अनाज, 16 जीरा, 16 धनिया, 16 पान, 16 सुपारी, 16 लौंग, 16 इलाइची, एक सुहाग की डिब्बी में रोली, मेहन्दी, काजल, सिन्दूर, तेल, कंघा, 16 चूड़ी और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा चढ़ाएं। इसके बाद मंगला गौरी माता की कथा सुनें या पढ़ें फिर आरती करें ।इसके बाद क्षमा प्रार्थना के बाद दिन भर व्रत रखें। चाहें तो फलाहार ले लें, लेकिन सेंधा नमक का सेवन न करें।शाम को अपना व्रत खोलें।दूसरे दिन मंगला गौरी की प्रतिमा और पूजा के सामान को किसी नदी में विसर्जित करें। सुहाग का सामान सौभाग्यवती स्त्रियों में बांट दें। ऐसा पांच साल तक सावन के हर मंगलवार को करें। आचार्य पंडित विपिन मिश्र(मार्तण्ड प्रभात ज्योतिष)

