भाई बहन के प्रेम का पर्व यमद्वितीया ,जाने मुहूर्त और महत्व
भाई दूज या यम द्वितीया
भारतीय सनातन संस्कृति में हर बात अद्भुत है । भाई बहन के प्रेम का प्रतीक जैसे रक्षा बंधन है वैसे ही महत्वपूर्ण यम द्वितीया है ।इस दिन बहन भाई को अपने हाथ से भोजन करवाती है । इसे यमुना और यम से जोड़ा जाता है ।आज हम आपको यमद्वितीया के मुहूर्त और महत्व पर प्रकाश डालेंगे। इस बार यमद्वितीया 16 नवम्बर को है।
कब है शुभ मुहूर्त
भाई दूज पर भाई को तिलक करने के लिये राहुकाल के समय को अशुभ माना जाता है।
16 नवम्बर सोमवार के दिन सर्वार्थसिद्धि योग प्रातः 6:41 बजे से अपराह्न 2:33 बजे तक एवं सिद्धि योग प्रातः 6:41 बजे से कुछ ही समय तक रहेगा। इस दिन शुक्र ग्रह का अपनी तुला राशि मे प्रवेश रात्रि में होगा। इस दिन वृश्चिक की संक्रांति भी प्रातः 6:51 बजे से लग रही है। इस दिन राहू-काल प्रातः 8:00 बजे से 9:25 बजे तक रहेगा।
भाई-दूज मुहूर्त:
1. प्रातः काल अमृत के चौघड़िया में।
6:40 बजे से 8:00 बजे तक।
2.प्रातः काल शुभ के चौघड़िया में 9:25 बजे से 10:40 बजे तक।
3.अपराह्न काल चर-लाभ-अमृत के चौघड़िया मुहुर्त में 1:20 बजे से सांय काल 5:20 बजे तक,
पौराणिक महत्व
शास्त्रों के अनुसार भाई को यम द्वितीया भी कहते हैं इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर उन्हें लंबी उम्र का आशीष देती हैं और इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है ब्रजमंडल में इस दिन बहनें यमुना नदी में खड़े होकर भाईयों को तिलक लगाती हैं।
अपराह्न व्यापिनी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 16 नवंबर सोमवार के दिन मनाया जाएगा।
भाई दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए।
यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को चावल खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। बहन चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।
इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल भी लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलती हैं।
“गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े”
इसी प्रकार इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है
” सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे”
इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।
भैया दूज की कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।