हिंद के माथे की बिंदी – समीर उपाध्याय

मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं संस्कृत मां की कोख से जन्मी हूं।
मैं हर भाषा को सगी बहन मानती हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंदी के माथे की बिंदी हूं।
मैं हिंदवासियों के रोम-रोम में बसी हूं।
मैं हिंद देश के कण-कण में व्याप्त हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं शब्दों का अगाध और समृद्ध सागर हूं।
मैं साहित्य का अद्भुत भंडार हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं हिंद की अभिव्यक्ति का सरलतम स्त्रोत हूं।
मैं हिंद के सुमधुर संगीत की सूरावली हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं हिंद की गौरवमयी गाथा हूं।
मैं काल को जीतनेवाली कालजयी भाषा हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका हूं।
मैं हिंद की एकता की अनुपम परंपरा हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं हिंद की स्वतंत्रता का शंखनाद हूं।
मैं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की आधारशिला हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं हिंद की आन, बान और शान का प्रतीक हूं।
मैं विभिन्न भाषारूपी नदियों में महानदी के समान हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं हिंद के ग्यारह राज्यों की राजभाषा हूं।
मैं विश्व के दूसरे नंबर की बड़ी भाषा हूं।
मैं हिंदी हूं।
हिंद के माथे की बिंदी हूं।
मैं अपने आप में एक समर्थ भाषा हूं।
मैं विश्व-भाषा बनने की पूर्ण अधिकारिणी हूं।
सर्वाधिकार सुरक्षित
समीर ललितचंद्र उपाध्याय
मनहर पार्क:96/ए
चोटीला:363520
जिला:सुरेंद्रनगर
गुजरात

