चौरसिया मार्बल की जमीन हड़पने की हो रही है साज़िश - www.martandprabhat.com
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चौरसिया मार्बल की जमीन हड़पने की हो रही है साज़िश

बस्ती :-  मारबल व्यवसायी वीरेन्द्र कुमार चौरसिया की गांधीनगर में कटेवश्र पार्क के सामने स्थित बेशकीमती जमीन हड़पने को लेकर रची जा रही साजिश के मामले में आखिरकार कोतवाली पुलिस को मुकदमा दर्ज करना पड़ा। मामले में पुरानी बस्ती के राजा मैदान निवासी वीरेन्द्र कुमार चौरसिया ने पुलिस को तहरीर देकर कोतवाली थाना क्षेत्र के लबनापार निवासी संतोष कुमार त्रिपाठी, पंकज व अन्य सहयोगियों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की मांग किया था।

प्रकरण में लेखपाल, कानूनगो, उप जिलाधिकारी सभी की रिपोर्ट में आरोपियों का पक्ष कमजोर पाया गया। जिलाधिकारी द्वारा उनके विरूद्ध मुकदमा दर्ज करने का स्पष्ट आदेश दिये जाने के बावजूद कोतवाली पुलिस मामले में टालमटोल का रवैया अपना रही थी। उच्चस्तरीय दबाव की बातें भी सामने आ रही थीं। खबर ये भी है मामला मुख्यमंत्री के सज्ञान में आ चुका था और कुछ लोगों पर गाज गिर सकती थी। स्थिति का अंदाजा लगाकर कोतवाल ने संतोष कुमार त्रिपाठी, पंकज तथा अन्य सहयोगियों के विरूद्ध आईपीसी 419, 420, 467, 468, 471, 352, 504, 427 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया है। इसकी विवेचना बड़ेवन चौकी प्रभारी विनोद कुमार यादव को सौंपी गयी है। बस्ती उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के बैनर तले एकजुट होकर मामले में संघर्ष कर रहे व्यापारियों ने इसे असत्य पर सम्य की जीत बताया है।

क्या है पूरा मामला

गांधीनगर मुख्य मार्ग पर कटेश्वरपार्क के सामने स्थित गाटा संख्या 204 में मकराना मार्बल के नाम से व्यवसायी वीरेन्द्र कुमार चौरसिया कास गोदाम है। यह 1917 की बैनामाशुदा जमीन है जो अब नगरपालिका में तीन भाइयों के नाम से मकान नम्बर 50,51,52 के रूप में दर्ज है। इसी जमीन के पीछे गाटा संख्या 202 व 203 है जिसका मुख्यमार्ग से कोई सम्बन्ध नही है। गाटा संख्या 202,203 से 204 वर्गफिट जमीन पंकज ने चौहद्दी छिपाकर संतोष कुमार त्रिपाठी को बैनामा कर दिया।

इसके बाद संतोष कुमार त्रिपाठी अपनी बैनामाशुदा जमीन को मुख्य मार्ग पर बताकर चौरसिया की बेशकीमती जमीन हड़पना चाहते थे। इसके लिये वे बलपूर्वक उनकी दीवाल गिराने का प्रयास भी कर चुके हैं। मामले में प्रशासन का बेहद लचर रवैया रहा। सबकुछ साफ होने के बाद भी लीपापोती के प्रयास किये जा रहे थे। खास तौर से जिलाधिकारी के स्पष्ट आदेश के बाद भी मुकदमा न दर्ज होने से पुलिस की भूमिका संदिग्ध थी।

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