छोटी दीपावली) नरक चतुर्दशी 2020 में जाने शुभ मुहूर्त, महत्व
लखनऊ :- दीपावली से एक दिन पहले मनाए जाने वाले त्योहार को नरक चतुर्दशी,रूप चौदस और छोटी दिवाली आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन दीप दान को विशेष महत्व दिया जाता है। ऐसा करने से यमराज के भय से मुक्ति मिलती है नरक चतुर्दशी के दिन दीप दान और अभ्यंग स्नान को विशेष महत्व दिया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और शरीर भी स्वस्थ रहता है। जिस घर में नरक चतुर्दशी के दिन मुख्य द्वार पर तेल का दीपक जलाया जाता है उस घर में यमराज प्रवेश नहीं करते और न हीं उस घर के लोगों को किसी प्रकार का भय सताता है।
नरक चतुर्दशी 2020 तिथि शुभ मुहूर्त:-
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ :- शाम 04 बजकर 11 मिनट से (13 नबंवर 2020)
चतुर्दशी तिथि समाप्त :- अगले दिन दोपहर 01 बजकर 49 मिनट तक (14 नबंवर 2020)
नरक चतुर्दशी का महत्व :-
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन विधि विधान से पूजा करने व्यक्ति को उसके सभी पापों से छुटकारा मिलता है। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन दीपदान को भी विशेष महत्व दिया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु और यमराज का भय समाप्त होता है।
शास्त्रों के अनुसार नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान करने वाले व्यक्ति को नर्क के दोषों से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन के सभी पाप समाप्त होते हैं। इस दिन तिल के तेल की मालिस करना भी शुभ माना जाता है। ऐसा करने से शरीर स्वस्थ रहता है। नरक चतुर्दशी को रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लेप और उबटन करने से रूप में निखार आता है। माना जाता है कि इस दिन जिस घर के मुख्य द्वार पर दीपक लाया जाता है उस घर में यमराज कभी भी प्रवेश नहीं कर पाते है
नरक चतुर्दशी की कथा :-
पौरणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक रन्तिदेव नामक राजा था। वह हमेशा धर्म – कर्म के काम में लगा रहता था। जब उनका अंतिम समय आया तब उन्हें लेने के लिए यमराज के दूत आये और उन्होंने कहा कि राजन अब आपका नरक में जाने का समय आ गया हैं। नरक में जाने की बात सुनकर राजा हैरान रह गये और उन्होंने यमदूतों से पूछा की मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया।
मैंने हमेशा अपना जीवन अच्छे कार्यों को करने में व्यतीत किया। तो आप मुझे नरक में क्यों ले जा रहे हो। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने बताया कि एक बार राजन तुम्हारे महल के द्वारा एक ब्राहमण आया था जो भूखा ही तुम्हारे द्वारा से लौट गया। इस कारण ही तुन्हें नरक में जाना पड रहा हैं। यह सब सुनकर राजा ने यमराज से अपनी गलती को सुधारने के लिए एक वर्ष का अतिरिक्त समय देने की प्रार्थना की।
यमराज ने राजा के द्वारा किये गये नम्र निवेदन को स्वीकार कर लिया और उन्हें एक वर्ष का समय दे दिया। यमदूतों से मुक्ति पाने के बाद राजा ऋषियों के पास गए और उन्हें पूर्ण वृतांत विस्तार से सुनाया। यह सब सुनकर ऋषियों ने राजा को एक उपाय बताया। जिसके अनुसार ही उसने कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखा और ब्राहमणों को भोजन कराया जिसके बाद उसे नरक जाने से मुक्ति मिल गई। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।