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प्रियंका गांधी के ‘राम सबके हैं’ पर बोले योगी- ये सद्बुद्धि पहले क्यों नहीं आई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राम जन्मभूमि मंदिर का भूमिपूजन किया. इस कार्यक्रम के बाद आजतक से बात करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह मेरे लिए बहुत ही भावुक और गौरवपूर्ण पल था. बतौर सीएम मैंने यूपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली और इस कार्य को मैंने पिछले तीन सालों से बड़े नजदीक से महसूस किया है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के ‘राम सबके हैं’ के बयान पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राम सबके हैं, यह हम बहुत पहले से कहते आए हैं. यह सद्बुद्धि उस वक्त आनी चाहिए थी, जब यहां पर कुल लोगों के पूर्वजों ने रामलला की मूर्तियों को हटाने की कोशिश की थी. आखिर कौन लोग थे, जो अयोध्या में रामलला का मंदिर नहीं चाहते थे.

सीएम योगी ने कहा कि वो कौन लोग थे जो कह रहे थे कि हम गर्भगृह से 200 मीटर दूर शिलान्यास करेंगे. वहां पर कुछ नहीं होना है. विवादित ढांचे में कुछ नहीं करना है. हम सभी लोगों को बुलाना चाहते थे. कोरोना के प्रोटोकॉल के कारण सीमित संख्या में लोगों को बुलाना था. साधु-संत इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने चाहते थे. इस पूरे कार्यक्रम में करीब 200 मेहमान आ पाए.

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बीजेपी का भी कोई पदाधिकारी कार्यक्रम में नहीं आया. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी इस कार्यक्रम में आ सकते थे. प्रदेश अध्यक्ष भी आ सकते थे. लेकिन कोई भी इस कार्यक्रम में सहभागी नहीं है. सीमित संख्या में मेहमानों को बुलाकर एक शुभ कार्यक्रम की शुरुआत कर देना, इस उद्देश्य से हम लोग कार्यक्रम को रखे थे.

‘सभी को राम के काज में सहयोग करना चाहिए’

सीएम योगी ने कहा कि कोरोना के प्रोटोकॉल को भी सख्ती से लागू करना था. लेकिन एक बहुप्रतिक्षित कार्यक्रम को बिना किसी देरी के आगे बढ़ाना था. इस उद्देश्य से ये कार्यक्रम हम लोगों ने इस रूप में किया. उन्होंने कहा कि कार्यक्रम का लाइव प्रसारण था. हमारा मानना है कि राम सबके हैं. सभी लोगों को राम के काज में सहयोग भी करना चाहिए. लेकिन राम के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

यूपी के सीएम ने आगे कहा कि हमने सबको जोड़ने का काम किया. हमने राम के नाम पर राजनीति नहीं की है. भगवान राम के मंदिर के लिए जिस निष्ठा से हम 1984 में जुड़े थे उसी निष्ठा से 2020 में भी जुड़े हुए हैं. लेकिन उन लोगों को सोचना चाहिए. आखिर 1949 में इनकी भावनाएं क्या थी. 1984 में क्या थी और 1992 में क्या थी. उसके बाद क्या थी. समय-समय पर वो सुप्रीम कोर्ट में जाते थे. ये लोग बोलते कुछ हैं और करते कुछ और हैं. हमने जो कहा वो किया.

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Author: Martand Prabhat

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