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मकर संक्रांति ,कब है शुभ मुहूर्त ,क्या है महत्व

विविधता में एकता

भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्योहार में से एक माना जाता है मकर संक्रांति ।समूचे भारत में मनाया जाने वाला ये त्योहार अलग अलग प्रदेशो में अलग अलग नाम से जाना और मनाया जाता है कही पोंगल तो कही बिहू नाम है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी के नाम से मनाया जाता है और उसका कारण ये है कि इस दिन लोग अपने यहां खिचड़ी  बनाते है।उत्तर भारत में इसका संबंध बाबा गोरखनाथ से भी है इस दिन गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी दान की जाती है। दूर दराज से लोग आते है बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है।

कब मनाते है मकर संक्रांति

सूर्य एक माह तक एक राशि में रहते है और हर बार सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में जाने की घटना को संक्रमण कहते है ।इस तरह से एक साल में कुल 12 संक्रमण होते है जिस दिन ये घटना होती है उस दिन को संक्रांति कहते है ।
जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते है तब मकर संक्रांति पर सूर्य का मकर में प्रवेश करते है उसे मकर संक्रांति कहते है ।
मकर राशि में सूर्य देवता का संक्रमण 14 जनवरी गुरुवार को दिन में 2 बजे  हैै।  लेकिन त्योहार 15 जनवरी शुक्रवार को को मनाया जाएगा ।
इस साल यह संयोग बहुत ही शुभ मुहूर्त में हो रहा है ।

यह नंदा और नक्षत्रानुसार महोदरी संक्रांति मानी जाएगी जो ब्राह्मणों, शिक्षकों, लेखकों, छात्रों के लिए लाभप्रद और शुभ रहेगी। शास्त्रों का मत है कि संक्रांति के 6 घंटे 24 मिनट पहले से पुण्य काल का आरंभ हो जात है। इसलिए इस वर्ष ब्रह्म मुहूर्त से संक्रांति का स्नान दान पुण्य किया जा सकेगा।प्रातःकाल के मुहूर्त यदि ग्रहण करे तो खिचड़ी 15 को ही मनाई जाएगी। लेकिन जो लोग तीर्थ स्थलों में स्नान के लिए गए हुए है वो 14 को ही स्नान दान आदि करेंगे। इस दिन दोपहर 2 बजकर 38 मिनट तक का समय संक्रांति से संबंधित धार्मिक कार्यों के लिए उत्तम रहेगा। वैसे पूरे दिन भी स्नान दान किया जा सकता है।

मकर संक्रांति की तिथि का इतिहास—

मकर संक्रांति पर तिथियों को लेकर बीते कुछ वर्षों में उलझन की स्थिति बनी हुई रहती है क्योंकि कई बार सूर्य का प्रवेश 14 जनवरी को शाम और रात में होता है। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार संक्रांति अगले दिन माना जाता है। आपको बता दें कि मकर संक्रांति का समय युगों से बदलता रहा है। ज्योतिषीय गणना और घटनाओं को जोड़ने से मालूम होता है कि महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि 6ठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गयी थी। अकबर के समय में 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी।

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