कानून की आड़ में हिंदू परंपराओं को निशाना बनाना गलत – प्रमोद पांडेय
ब्यूरो । राजस्थान में बीजेपी सरकार के शपथ ग्रहण से ठीक पहले राजस्थान पुलिस का एक पोस्ट मृत्यु भोज को लेकर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमे राजस्थान पुलिस मृत्यु भोज को दंडनीय अपराध घोषित कर रही है।
एक्स/ट्विटर पर इस कानून के बारे में बताते हुए राजस्थान पुलिस ने लिखा है, “मृत्युभोज करना और उसमें शामिल होना कानूनन दंडनीय है। मानवीय दृष्टिकोण से भी यह आयोजन अनुचित है। आइए मिलकर इस कुरूति को समाज से दूर करें, इसका विरोध करें।
इसके बाद राज
स्थान पुलिस की आलोचना शुरू हो गई है , इसे कई पोस्ट में परंपराओं में गैर जरूरी दखल बताया जा रहा है , एक यूजर ने कहा कि एकाएक राजस्थान पुलिस इस विषय पर क्यों पोस्ट कर रही है, जबकि इस सम्बन्ध में कानून 1960 से ही है,।
वही कुछ यूजर की माने तो सेकुलरिज्म की आड़ में कांग्रेस सरकार हिंदू धर्म पर लगातार इस तरह के कानून थोपती रहती है।
इस बात को लेकर हिंदू वादी नेताओ में रोष है। हिंदूवादी प्रमोद पांडेय ने कहा कि आजादी के बाद से लगातार सेकुलरिज्म की आड़ में हिंदू परंपराओं पर प्रहार होता रहा है जो ठीक नहीं। इस तरह के कानून बना कर हिदू विरोधी सरकारें कानून बना कर हिंदू परंपराओं पर प्रहार करते रहते है, चाहे दीपावली हो,दक्षिण का सबरीमाला मंदिर का मामला हो या जल्लीकुट्टू एक धर्म विशेष को निशाना बनाया जाता है ।
क्या राजस्थान पुलिस इस विषय में पहली बार पोस्ट कर रही है?
ऐसा पहली बार नहीं है जब राजस्थान की पुलिस ने मृत्युभोज और इससे सम्बंधित कानून पर पोस्ट किया हो। इससे पहले 2020, 2021, 2022 और 2023 में भी पोस्ट कर चुकी है। राजस्थान पुलिस के जिला स्तर के हैंडल भी इस विषय में ट्वीट करती आई है। हालाँकि 2020 से पहले का कोई पोस्ट नहीं है। इस विषय में कानून भले ही 1960 में ही बन गया हो, लेकिन वर्ष 2020 से पहले तक यह कानून इतनी चर्चा में नही था, राजस्थान में इस कानून का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा था। इस कानून को कड़ाई से पालन करवाने की शुरुआत हुई 2020 में जब कोरोना महामारी आई।
मृत्युभोज क्या है और मृत्युभोज कानून क्या कहता है?
मृत्यु भोज की परंपरा लगभग सम्पूर्ण भारत में बहुसंख्यक हिन्दू समाज में सदियों से है ,सिर्फ हिंदू समाज ही नही यह परंपरा सभी पंथ और संप्रदाय में कम या अधिक राजस्थान के सभी इलाकों और विशेष कर ग्रामीण अंचलों में यह परम्परा रही है कि किसी की मृत्यु के निश्चित दिनों के बाद उसके परिजन मृत्युभोज का आयोजन करते हैं। यह भारत में अन्य प्रदेशों में भी होता है।
इस आयोजन में परिजनों के अलावा मृतक का परिवार अपने सम्बन्धियों तथा गाँव-मोहल्ले और समाज के लोगों को आमंत्रित करता है। एक तरह से यह एक सामाजिक भोज होता है । इस रीति में समस्या तब आई जब यह समाज में दबाव डाल कर करवाया जाने लगा। ऐसे में जो परिवार इस आयोजन में सक्षम नहीं थे उन पर कभी-कभी कर्जे का भी बोझ चढ़ जाता था। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं में ही मृत्युभोज का आयोजन होता है, मुस्लिमो में चेहल्लुम का आयोजन किया जाता है। यह मृतक की मौत के 40 दिन के बाद आयोजित होता है जिसमें लोगों को खाने पर बुलाया जाता है।
इसको लेकर राजस्थान में राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम वर्ष 1960 में आया। इस कानून के तहत मृत्युभोज का आयोजन करने और उसमें भाग लेने, दोनों को गैरकानूनी घोषित किया गया। इसके उल्लंघन पर ₹1,000 और एक वर्ष तक सजा का प्रावधान किया गया। इस कानून में मृत्युभोज या अन्य ऐसे ही किसी आयोजन में कितने लोग शामिल हों, उसकी संख्या नहीं बताई गई है। राजस्थान सरकार का ही एक अन्य कानून कहता है कि 100 लोगों से अधिक के भोज का आयोजन नहीं किया जा सकता। हालाँकि, यह कानून किसी भी तरह से लोगों को इस बात से नहीं रोकता कि वह अंतिम संस्कार से सम्बंधित रीति-रिवाजों में कोई बदलाव करें।
इसका उद्देश्य यह था कि मृत्युभोज के कारण किसी परिवार पर आर्थिक बोझ ना पड़े। या किसी को कोई इसके लिए मजबूर न कर सके। ये पंडित नेहरू का दौर था , उस समय हिंदू धर्म के हर विषय के ऊपर कानून बनाना गर्व को बात हो गई थी और इसीलिए ये कानून विवादों में घिर गया।