Saturday, March 15, 2025
देश

कौन है रम्भा और इलसा , क्या काम है इन दोनो का ?

डेस्क से। चंद्रयान 3 के सफल लांचिंग के साथ ही भारत चंद्रमा पर पहुंचने वाला चौथा देश बन गया है। इस विशेष उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस से इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी।

चंद्रयान के बाद अगर किसी की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है तो वो है रम्भा और इल्सा।

कौन है रम्भा और इल्सा 

चांद की सतह पर साफ्ट लैडिंग का मकसद भविष्य के अंतरग्रही अभियानों को अंजाम देने है। इसे फलीभूत करने के लिए अनूठे प्रयोग करने के लिए चंद्रयान-3 पर इसरो अत्याधुनिक उपकरणों से लैस पेलोड भेज रहा है।

ताकि चांद की मिट्टी को बेहतर तरीक से समझा जा सके।साथ ही चांद की कक्षाओं से इस नीले उपग्रह की बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकें।

इन्ही पेलोड में शामिल है रम्भा और इल्सा शामिल हैं जो 14 दिवसीय अभियान के साथ नई राह दिखाने वाले नवीनतम प्रयोग करेंगी।

क्या काम है रम्भा और इल्सा का

ये दोनो चंद्रयान के साथ भेजे गए दो उपकरण है।यह दोनों चंद्रमा के वातावरण के गहन अध्ययन के साथ ही सतह की खुदाई ऐसे स्थानों पर करेंगे जो उसके खनिजों के संयोजन को बेहतर तरीके से समझने में सहायक होंगे। लैंडर विक्रम रोवर प्रज्ञान की फोटो खींचेगा। जबकि रोवर अपने उपकरणों की मदद से चांद पर भूकंपीय गतिविधियों का अध्ययन करेगा। वह लेजर बीम का इस्तेमाल करके चांद की सतह के टुकड़ों को पिघलाने की भी कोशिश करेगा।

रीगोलिथ नाम की सतह के अध्ययन के दौरान इस प्रक्रिया में निकलने वाली गैसों पर भी शोध होगा। रीगोलिथ में इलेक्टि्रक या थर्मल खूबियां हैं।

इसरो के चेयरमैन एस.सोमनाथ ने बताया कि हम जानते हैं कि चांद का कोई वातावरण नहीं है। लेकिन यह बात पूरी तरह से सच नहीं है क्योंकि उससे गैसें बाहर निकलती रहती हैं।

यह आयनित होने के बजाय ज्यादातर सतह के बेहद करीब रहती हैं। यह स्थितियां दिन और रात में बदलती रहती हैं। इसलिए चांद की रेडियोधर्मी रचना से उसका हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर बना है और एटमास्फीयर (वातावरण) है। लैंडर में स्थिच रम्भा पेलोड चांद की सतह के करीब स्थित प्लाज्मा की सघनता को मापेगा और समय-समय पर उनके बदलावों का अध्ययन करेगा।

रोवर छोटे से वातावरण, आणविक वातावरण और चार्जड कणों के अंतर का बारीकी से अध्ययन करेगा। रात के समय चंद्रमा की सतह का तापमान गिरकर -232 डिग्री सेलसियस तक हो जाता है।

×